आने वालो ये तो बताओ, शहर मदीना कैसा है ||
आने वालो ये तो बताओ, शहर मदीना कैसा है।
सर उन के क़दमों में रख कर, झुक कर जीना कैसा है।।
देखके जिसको जी नहीं भरता, शहर-ए-मदीना ऐसा है।
आँखों को जो ठंडक बख्शे, गुंबदे ख़ज़रा ऐसा है।।
गुंबदे ख़ज़रा के साये मे, बैठ के तुम तो आये हो।
उस साये मे रब के आगे, सजदा करना कैसा है।।
मैं भी चुमके आज आया हूँ, उन महकती गलियों को।
जो कुछ देखा उन गलियों में, कहीं न देखा ऐसा है।।
दिल आंखें और रूह तुम्हारी लगती है सहराब मुझे।
दर पे उनके बैठ के आबे ज़मज़म पीना कैसा है ।।
हम मेहमान बने थे उनके, अर्श पे जो मेहमान हुए।
क्यों न किस्मत पर हो नाजा जिनका आक़ा ऐसा है।।
दीवानो आँखों से तुम्हारी इतना पूछ तो लेने दो।
वक़्त-इ-दुआ रोज़े पे उनके आंसू बहाना कैसा है।।
मिम्बर-ए-पाक रसूल भी देखा, देखा ख़ास मुसल्ला भी।
हरम शरीफ का हर मंजर ही, नजर में जंचता ऐसा है।।
वापस आये दिल नहीं करता, छोड़ के उनके चौखट को।
जान भी दे दे उनके दर पर, दिल में आता ऐसा है
वक़्त-ए-रुखसत दिल को अपने छोर वहाँ आये हो।
ये बतलाओ इशरत उन के दर से बिछड़ना कैसा है
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