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सूरह कुरैश हिंदी || हिंदी तर्जुमा | हिंदी वाक़िया || Surah Quraish in English || Story

सूरह फील हिंदी | हिंदी तर्जुमा | हिंदी वाक़िया | अलम तरा कैफ़ | Soorah Feel In English | Story


सूरह क़ुरैश

सूरह कुरैश || लि इलाफि क़ुरैश || सूरह कुरैश हिंदी 

  1. लि इलाफि क़ुरैश
  2. इलाफ़िहिम रिहलतश शिताई वस सैफ़
  3. फ़ल यअबुदू रब्बा हाज़ल बैत
  4. अल्लज़ी अत अमहुम मिन जुआ व आम नहुम मिन खौफ़

Surah Quraish in Hinglish

  1. Li Ilaafi Quraish
  2. Ilaafihim Rihlatash Shitaai Was Saif
  3. Fal Ya Abudu Rabba Hazal Bait
  4. Allazi At Amahum Min Jua Wa Amanahum Min Khauf

Translation ( तर्जुमा )

  1. चूंकि क़ुरैश आदी हो गए हैं
  2. यानि जाड़े और गर्मी के सफ़र से उन को उन्स हो गया है
  3. तो इस लिए उन को चाहिए कि इस घर ( काबा ) के मालिक की इबादत करें
  4. जिस ने उन को भूक में खाना दिया और खौफ़ से अमन अता फ़रमाया

सूरह कुरैश की तफ़सीर व तशरीह

1.  क़ुरैश किसे कहते हैं?

कुरैश अरब के एक क़बीले का नाम है जो मक्का में आबाद था और काबे की देख रेख उन के जिम्मे थी, और मक्का जहाँ न खेती थी और न ही जानवरों की परवरिश हो पाती थी क्यूंकि उन के लिए चारे का इन्तिज़ाम नहीं था और ऊँट की परवरिश इसलिए की जाती थी कि वो कांटेदार पौधों को भी अपनी ख़ुराक बना लेता है |

चूंकि कुरैश की रोज़ी रोटी का मदार तिजारत पर था और तिजारत के लिए ये लोग आम तौर पर दो सफ़र किया करते थे, एक सर्दी के मौसम में यमन का क्यूंकि वहां का मौसम गर्म होता था | और गर्मी के मौसम में शाम का क्यूंकि वहां का मौसम ठंडा होता था |

लेकिन ये ऐसे इलाक़े थे जहाँ हुकूमत नाम की कोई चीज़ न थी और चूंकि गरीबी बहुत थी इसलिए रास्ते में काफिलों के साथ लूट मार हो जाती थी और सफ़र करने वालों को जान माल का खतरा रहता था, लेकिन कुरैश कबीले वालों की हर कोई इज्ज़त व इहतिराम करता था और उन पर हमला नहीं करता था |

2. कबीला कुरैश पर कोई हमला क्यूँ नहीं करता था?

क्यूंकि लोग कहते थे ये काबे के मुतवल्ली हैं अल्लाह के घर के ज़िम्मेदार हैं जो लोग मक्का जाते हैं उन की ये लोग मेहमान नवाजी करते हैं इसलिए पूरे सफ़र में क़ुरैश को कोई नहीं छेड़ता था, ख़ास कर असहाबे फ़ील के वाकिये के बाद तो लोगों की निगाह में कुरैश की इज्ज़त और बढ़ गयी |

3. कुरैश पर अल्लाह के तीन इनआम.

इसलिए इस सूरह में अल्लाह तआला ने कुरैश को तीन इनआमों के अहसान याद दिलाये हैं और ये तीनों इनआम उनको काबे की वजह से ही हासिल थे

  1. गर्म और ठन्डे मौसम में उनका बेख़ौफ़ो खतर ( बगैर किसी डर व खौफ़ के ) लम्बा तिजारती सफ़र करना
  2. ऐसी सरज़मीन में बसने के बावुजूद जहाँ न पानी था और न घास उगती थी फिर भी खाने पीने की चीज़ें मुहय्या हो जाना
  3. कोई ऐसी हुकूमत न थी जो अमन कायम करती हर तरफ जानो माल का खतरा लेकिन ऐसे हाल में भी उनका महफूज़ रहना

अल्लाह तआला ने इन तीन इनामों को ज़िक्र किया जो मक्का के कुरैश कबीले को अल्लाह के घर ( काबा ) की खिदमत की वजह से हासिल हुआ | तो अगर उन पर ये इनआम किये गए हैं तो उनको भी चाहिए कि शुक्राने के तौर पर वो बुतों को पूजने के बजाये इसी घर के मालिक की इबादत करें |

4. इस सूरह का सबक़.

इस सूरह में सबक का एक अहम् पहलू ये है कि ज़िन्दगी की ज़रूरतों का पूरा होना और अमनो अमान अल्लाह की दो बड़ी नेअमतें हैं अगर ये किसी को हासिल हों तो ये समझ लो कि उसे दुनिया की तमाम नेअमतें हासिल हैं और फिर उसका फ़रीज़ा ये बनता है कि उसके लिए अपने परवरदिगार का शुक्र अदा करे  |




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