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आला हज़रत : आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान और मुजद्दिदे आजम

आला हज़रत : आला हजरत इमाम अहमद रज़ा खान और मुजद्दिदे आजम

मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम शमये बजमे हिदायत पे लाखों सलाम 


अहमद रजा खान (अरबी : أحمد رضا خان, फारसी : احمد رضا خان, उर्दू : احمد رضا خان, हिंदी : अहमद रज़ा खान), जिसे आमतौर पर अहमद रजा खान बरेलवी, अरबी में इमाम अहमद रज़ा खान, या "आला हज़रत" के नाम से जाना जाता है -हज़रत "(14 जून 1856 सीई या 10 शावाल 1272 एएच - 28 अक्टूबर 1921 सीई या 25 सफार 1340 एएच ), एक इस्लामी विद्वान, न्यायवादी, धर्मविज्ञानी, तपस्वी, सूफी और ब्रिटिश भारत में सुधारक थे,  और संस्थापक बरलेवी आंदोलन का। रजा खान ने कानून, धर्म, दर्शन और विज्ञान सहित कई विषयों पर लिखा था।

इमाम ए अहले सुन्नत अल - हाफिज, अल- कारी अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी का जन्म १० शव्वाल १६७२ हिजरी मुताबिक १४ जून १८५६ को बरेली में हुआ। आपके पूर्वज सईद उल्लाह खान कंधार के पठान थे जो मुग़लों के समय में हिंदुस्तान आये थें। इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी के मानने वाले उन्हें आला हजरत के नाम से याद करते हैं। आला हज़रत बहुत बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक, तथा समाज सुधारक थे। जिन्हें उस समय के प्रसिद्ध अरब विद्वानों ने यह उपाधि दी। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के दिलों में अल्लाह तआला व मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम के प्रति प्रेम भर कर हज़रत मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तआला की सुन्नतों को जीवित कर के इस्लाम की सही रूह को पेश किया, आपके वालिद साहब ने 13 वर्ष की छोटी सी आयु में अहमद रज़ा को मुफ्ती घोषित कर दिया। उन्होंने 55 से अधिक विभिन्न विषयों पर 1000 से अधिक किताबें लिखीं जिन में तफ्सीर हदीस उनकी एक प्रमुख पुस्तक जिस का नाम "अद्दौलतुल मक्किया " है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम शरीफ़ में लिखा। उनकी एक और प्रमुख किताब फतावा रजविया इस सदी के इस्लामी कानून का अच्छा उदाहरण है जो 13 विभागों में वितरित है। इमाम अहमद रज़ा खान ने कुरान ए करीम का उर्दू अनुवाद भी किया जिसे कंजुल ईमान नाम से जाना जाता है, आज उनका तर्जुमा इंग्लिश, हिंदी, तमिल, तेलुगू, फारसी, फ्रेंच, डच, स्पैनिश, अफ्रीकी भाषा में अनुवाद किया जा रहा है, आला हज़रत ने पैगम्बर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान को घटाने वालो को क़ुरआन और हदीस की मदद से मुंह तोड़ जवाब दिया! आपके ही जरिए से मुफ्ती ए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा खान, हुज्जतुल इस्लाम हामिद रज़ा खान, अख़्तर रज़ा खान अज़हरी मियाँ, जैसे बुजुर्ग इस दुनिया में आए, जिन्होंने इल्म की शमा को पूरी दुनिया में रोशन कर दिया,जब आला हजरत हज के लिए गए हुए थे तब उन्हें हुज़ूर का दीदार करने की तलब हुए तो उन्होंने इस तलब में एक शायर पढा "ऐ सूए न लाज़र फिरते है मेरे जैसे अनेक ओ कार फिरते है"

आभार : विकिपीडिआ 




ये शान थी मेरे आला हज़रत की अपना हाथ तक देना गवारा नहीं करते थे बद अकीदो को
एक बार मेरे सय्यदी आला हज़रत कुछ ज्यादा ही बीमार हुए आस पास के हकीमो से इलाज चल रहा था लेकिन फायदा नहीं हो रहा था तो उनके इलाज के लिए एक लखनऊ के हकीम साहब को बरेली शरीफ लाया गया आला हज़रत के इलाज के लिए जब हकीम साहब आला हज़रत के करीब गए तो आप से कहा के आप अपना हाथ दीजिये मुझे नब्ज चेक करनी है मेरे आला ने कहा पहले आप अपना अक़ीदा बताये हकीम साहब बोले नब्ज से अक़ीदे का क्या ताल्लुक मेरे आला हज़रत ने फ़रमाया अल्हम्दुलिल्लाह इस फ़क़ीर ने अपना हाथ गौसे आज़म के हाथ पे दिया है आज तक किसी बद अक़ीदा के हाथ में अपना हाथ नहीं दिया है इस लिए आप पहले अपना अक़ीदा बताये हकीम साहब बोले में क्या अक़ीदा बताऊ अपना किस मसले पे बताऊ आला हज़रत ने फ़रमाया हकीम साहब क्या कहते है आप असरफ अली थानवी , गंगोही ,कासिम ननोतवी इनके बारे में आप का क्या अक़ीदा है हकीम साहब बोले हज़रत मुझे इनके बारे में कुछ नहीं पता आला हज़रत ने फ़रमाया के हकीम साहब के रहने का इंतजाम किया जाये और असरफ अली थानवी, कासिम ननोतवी, गंगोही की लिखी हुयी किताबे हिब्जूल ईमान, हुस्सामुल हरमेन ,तहजुरिनास ये इन्ही लोगो की लिखी हुयी किताबे है पहले आज शाम को आप इन किताबो को पढ़ये कल फिर मेरे पास आना फिर बताना के क्या अक़ीदा है इन लोगो के बारे में आप का हकीम साहब रात भर किताबे पढ़ते रहे सुबह जब आये तो आला हज़रत ने फ़रमाया हकीम साहब अब बताइये क्या अक़ीदा है इन लोगो के बारे में आप का हकीम साहब बोले हज़रत ये ऐसे बत्तरीन काफिर है जो इनके कुफ्र पे शक करे वो भी काफिर मेरे आला हज़रत ने फ़रमाया अब आप मेरी नब्ज चेक कर सकते है हकीम साहब बोले हज़रत में तो आप का इलाज करने आया था आप ने मेरा ही इलाज कर दिया आज कल लोग गुस्ताखे रसूल फिरके में अपनी बेटीयो बेटो की शादी कर रहे है और कहते है के कुछ नहीं ये सब मौलाना लोगो की बाते है आपस में लड़ाने वाली हम लोग तो सब मुसलमान ही तो है अरे ज़रा सोचो जो गुस्ताखे रसूल होगा वो मुसलमान बचा ही कब या अल्लाह सब से पहले मुझे फिर आप को हिदायत आता फरमाए :


मसलके आला हज़रत ज़िंदाबाद

मसलके आला हज़रत ज़िंदाबाद





कुछ गैरों ने पूंछा आलाहज़रत को इतना क्यों मानते हो -?

तो कहा : कान खोल के सुनो ________

इस दुनियां में बहुत कलमगार आये ,
किसी ने कलम उठाया लैला का ज़िक्र किया ,
किसी ने कलम उठाया मजनूं का ज़िक्र किया ,
किसी ने क़लम उठाया शीरी का ज़िक्र किया ,
किसी ने क़लम उठाया फरहाद का ज़िक्र किया ,

लेकिन आलाहज़रत ने जब , जब क़लम उठाया किसी दुनियादार की नहीं बल्कि मदीने के ताज़दार के बारे में ज़िक्र किया .

आप देखो तो सही क्या खूब फ़रमाते हैं आलाहज़रत :
उन्हें जाना , उन्हें माना , न रखा गैर से काम , लिल्लाह हिल हम्द मैं दुनियां से मुसलमान गया .

क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी की पेशानी के बारे में लिखा :
जिस के माथे शफ़ाअत का सेहरा रहा, उस ज़बीने सआदत पे लाखों सलाम .

क़लम उठा आलाहज़रत का तो नबी के गोशे मुबारक के बारे में लिखा :
दूरो नज़दीक के सुनने वाले वो कान , काने लाले करामत पे लाखों सलाम.

क़लम उठा आलाहज़रत का लवे मुस्तफ़ा के बारे में लिखा :
पतली, पतली गुले क़ुदस की पत्तियां , उन लवों की नज़ाक़त पे लाखों सलाम .

जब क़लम उठा आलाहज़रत का आमदे हुज़ूर के बारे में लिखा :
जिस सुहानी घड़ी चमका तैबा का चाँद , उस दिल अफरोज साअत पे लाखों सलाम.
क़लम उठा आलाहज़रत का शहरे रसूल के बारे में लिखा :
हरम की ज़मीं और क़दम रख के चलना , अरे सर का मौक़ा है ओ जाने बाले .

क़लम उठा आलाहज़रत का नबी की हयात के बारे में लिखा :
तू ज़िंदा है वल्लाह , तू ज़िंदा है वल्लाह मेरे चश्मे आलम से छुप जाने बाले.

क़लम उठा आलाहज़रत का तो अताये रसूल के बारे में लिखा :
मेरे करीम से गर , क़तरा किसी ने माँगा, दरिया वहा दिए हैं दुरबे बहा दिए हैं..

क़लम उठा आलाहज़रत का तो शफ़ाअत ए रसूल के बारे में लिखा :
सबने शफे महशर में ललकार दिया हमको , अये बेकसों के आक़ा अब तेरी दुहाई है .

और जब क़लम उठा आलाहज़रत का तो गुम्बदे खज़रा के बारे में लिखा :
हाजियो आओ शहंशाह का रौज़ा देखो, क़ाबा तो देख चुके , काबे का क़ाबा देखो ....










इसलिए हम अपने इमाम की बारगाह में खिराजे अक़ीदत पेश करते हैं --
डाल दी क़ल्ब में अज़मते मुस्तफ़ा
सैय्यदी आलाहज़रत पे लाखों सलाम
जीनकी हर हर अदा सुन्नते मुस्तफा
वो रजा आला हजरत बरेली के शाह
मुझसे खिदमत के कुदसी कहे हा रजा
मुस्तफा जाने रहमत पे लाखो सलाम




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